देश के वीरों की गाथा तुमको आज सुनानी है,
याद करो फ़िर से शहीदो की कुर्वानी है !
एक वीर जब बोर्डर पर लडने जाता है
छोड़के सारे रिश्ते नाते अपना फर्ज निभाता है !
धरती मां की रक्षा खातिर सालों तैयारी करता है
फर्ज निभाने का निश्चय कर सेना में भर्ती होता है
बीवी बच्चे और मां बाप रोते ही रह जाते हैं
आंगन सूना कर जा रहे बेटे को रोक नहीं पाते हैं
सिर पर कफ़न बांध बेटा यारों से रुसवा हो जाता है
भारत के गौरव हिमालय को झुकने नहीं देना चाहता है
अपने खून के बदले मां बेटी को बचाउगां
भक्षक को मार रक्षक कहलाऊगां !
तोड़ कर रख दुंगा आंचल छूने वाले हाथों को
अपने खून से जमीं पर लकीर खीच जाउगा
सियाचिन का नाम है उंचा देश की ढाल कहाता है
माइनस सत्तर डिग्री पर जवान वहा अपनी हड्डी गलाता है
आये दिन बोर्डर पर जवान मरते है
राजनीति के दाव पेंच भारी भरकम चलते हैं
वीरान हो गया घर उसका किसी को ना ये दिखता है
घर का इकलौता चिराग जब अपनों से छीनता है
दोनों हाथ खाली, ना बिंदिया और है बिखरे बाल
शहीदो की पत्नियों का सूना होता रोज़ श्रंगार
आंगन में बच्चे चीख चीख कर पूछते हैं
सबके बापू आ गये मेरे क्युं नहीं लौटते हैं
शहीदो की मौत पर हम दो दिन शोक मनाते हैं
फर्क नहीं पडता किसी को सोच लौट आते हैं
सियासत को लहु पीने की लत हो गयी है
तभी फ़ौजी की जान सस्ती हो गयी है !
हमे फर्क पडता है ये आक्रोश जताना है
हर भारतीय फ़ौजी है दुनिया को दिखलाना है !
— जयति जैन ‘नूतन’