हिस्सा
” भैया ! अंजलि के लिए हम जो लड़का देख कर आये हैं वह किसी भी तरह अंजलि के काबिल नहीं हैं । मुझे समझ नहीं आ रहा अंजलि इस रिश्ते के लिए कैसे तैयार हो गयी ? ” मदन ने अपने बड़े भैया सोहन से मन की आशंका जाहिर की ।
सोहन कुटिलता से मुस्कुराता हुआ बोला ” लल्ला ! तू न समझेगा मेरी चाल ! फिर बुराई क्या है उस लड़के में ? चालीस साल का ही तो है । भले अंजलि तेईस की ही है लेकिन विधवा होने के साथ ही एक बेटे की मां भी है । भला अपनी बिरादरी में कौन उसका हाथ थामेगा ?”
” भैया ! लेकिन इसमें चाल क्या है ? मैं समझा नहीं । ”
” तू ठहरा नीरा बेवकूफ ! सोच अगर अंजलि शादी से इनकार कर दे तो क्या होगा ? पूरी जिंदगी हमें उसे और उसके बेटे को बैठाकर खिलाना पड़ेगा । इतना ही नहीं उसके बेटे को अपनी संपत्ति में से भी एक हिस्सा देना पड़ेगा । शादी के लिए उसे रजामंद करके मैंने एक तीर से दो शिकार किये हैं । समाज की नजर में बड़े भाई का फर्ज भी निभाया और अपनी संपत्ति में एक और हिस्सा लगने से भी बचा लिया । है कि नहीं मस्त चाल । इसे कहते हैं ‘ हर्रे लगे न फिटकरी , रंग चोखा ‘ । ”
” लेकिन भैया ! शादी के बाद भी अगर उसने अपना हिस्सा मांग लिया तो ? ”
” अरे ! तो समाज किस दिन काम आएगा ? ”
दरवाजे की ओट में खड़ी अंजलि अपने भाइयों की बात सुनकर हतप्रभ थी । लड़के का गुणगान करके उसे शादी के लिए रजामंद करने की कोशिश करते हुए चेहरे पर प्यारी सी मुस्कान लिए सोहन भैया का चेहरा उसकी आँखों के सामने घूम गया ।
बेहतरीन लघुकथा
हार्दिक आभार लक्ष्मी जी !
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, दरकते रिश्तों की कथा मर्म को छू गई. अत्यंत समसामयिक, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय बहनजी ! सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद !
इस को ही कहते हैं सिसकते रिश्ते . मोह प्यार के रिश्ते आर्थिक रिश्ते बन गए हैं . लघु कथा बहुत अछि लगी .
बिल्कुल सही कहा आपने भाईसाहब ! इन्हें सिसकते रिश्ते ही कहा जायेगा जो दिल से न होकर सिर्फ लोकलाज की खातिर निभाये जा रहे हैं । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार ।