कविता

प्यार

मैने की आईने से दोस्ती
संवारता खुद को जाने क्यों
लगता मुझे प्यार हो गया

नयन कह जाते बिन बोले
नींद जाने कौन उड़ा गया
निहारते रहते सूनी राहों को

शब्दों को गढ़ता बन शिल्पकार
दिल के अंदर प्रेम के ढाई अक्षर
सहंम सी जाती अंगुलियां हाथों की

अंगुलियां बनी मोबाइल की दीवानी
शब्दों को जाने क्यों लगता कर्फ्यू
अटक जाते शब्द उन तक पहुँचने में

नजदीकियां धड़कन की चाल बढ़ा देती
जैसे फूलों सुगंध हवा में समां सी जाती
लगने लगता उनको मुझसे प्यार होगया

संजय वर्मा ‘दृष्टी ‘

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /[email protected] 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच

One thought on “प्यार

  • लक्ष्मी थपलियाल

    वाह बेहतरीन

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