” —————————— शरमाये हो फिर से ” !!
रुख़सारों को लटें चूमती , इतराये हो फिर से !
दर्पण में प्रतिबिम्ब निहारा , शरमाये हो फिर से !!
है हिसाब खातों के देखा , होगी छापामारी !
चोट खाए व्योपारी जैसे , घबराये ही फिर से !!
झूंठी मूठी शान दिखाये , हंसी ओढ़ते हो तुम !
खुद पर नाज़ किया करते हो , मदमाये हो फिर से !!
अपनों से जो मिला होंसला , उसको कायम रखना !
राज़ समेटे खुद में अपने , बल खाये हो फिर से !!
खुशियां तो आनी जानी हैं , मुस्काये पल पल पर !
औरों की ना धरी कान पर , भरमाये हो फिर से !!
प्यार बांटने से बढ़ता है , नेह जगाया ऐसा !
समय यहां मुट्ठी में करके , हरषाये हो फिर से !!
बृज व्यास