” मौसम “
मौसम भी बड़ा अजीब है !
इसकी फितरत को ,
कौन जान पाया है !!
मौसम कभी गाता है ,
गुनगुनाता है !
कभी खामोश ,
सफेद चादर ओढ़ ,
कंपकंपाता है !
कभी तमतमाकर ,
तपता है , तपाता है !
दहकता है ,
दहकाता है !!
कभी बिखेर देता है खुशबू ,
कभी दिल खोल ,
मुस्कराता है !
कभी भीगता है ,
भिगोता है !
कभी बन्धा बन्धा सा ,
कभी सारे बन्धन ,
खोलता है !
कभी खुशियां बिखेरता है ,
जमीं क्या आसमां ,
सभी को टेरता है !
कभी धुंध , धुएं से ,
घबराकर ,
हो जाता है खामोश !
कभी बारूद , एटमी धमाकों से ,
डरकर ,
खो देता है होंश !
कभी थिरकता है ,
नाचता है !
मन की भाषा ,
बांचता है !
सोचता हूँ ,
आखिर यह सब,
किसके लिए ,
करता है मौसम ?
किससे बन्धी है ,
इसके मन की डोर !
कौन है ,
जो खींचे अपने और !
मौसम बदले तो ,
रंग कौन बदले ?
कौन इसके अनुरूप ढले ?
कौन इसकी सहचरी ,
हाँ हाँ , प्रकृति !
जो परस्पर ,
एक दूसरे के पूरक हैं !
दोनों साथ साथ चलते है !
एक दूजे के अनुरूप ,
रंग बदलते हैं !
जैसे पुरुष – स्त्री !
शिव – शक्ति
मौसम – प्रकृति !!