मददगार
भूख से तड़प तड़प कर मर चुके ‘ कलुआ ‘ के घर गांव के सरपंच साहब पहुंचे । मीडिया कर्मी पहले ही पहुंचे हुए थे । पिता के शव से लिपट कर करुण क्रंदन कर रही मुनिया के आंसू पोंछते हुए सरपंच साहब बोले ” चुप हो जा बेटी ! हम सब गांव वाले तेरे अपने ही हैं न ! किसी भी चीज की जरूरत हो निस्संकोच मांग लेना ।”
राजकुमार भाई , जब कलुआ भू०ख से तड़प रहा था तो सरपंच साहब कहाँ थे ? यह लोग बस डब्बल स्टैण्डर्ड ही हैं .
बिल्कुल सही कहा आपने आदरणीय भाईसाहब ! भूख से तड़प तड़प कर जान गंवाने वाले कलुआ जैसे गरीबों की मौत पर भी राजनीति होती है और मीडिया को देखकर उसके कई नए हमदर्द पैदा हो जाते हैं । सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हॄदय से आभार !
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, छोटी-सी लघुकथा इंसानियत के दोहरे मापदंड क बहुत बड़ा संदेश छोड़ गई. यथार्थ को दर्शाती हुई अत्यंत मार्मिक, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन व धन्यवाद.
आदरणीय बहनजी ! बेहद सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद ।