ग़ज़ल
स्याह रातों मे नया नूर दिखाने वाला ।
कोई आयेगा मुझे राह बताने वाला ।।
ऐ अंधेरो के बुरे लोग ,कुछ डरो उससे,
कोई आयेगा एक चराग जलाने वाला ।
मैं कोई गीत लिखूँ ,दर्द में डूबा यारों,
कोई आये तो मुझे दर्द सुनाने वाला ।
कई सावन, कई पतझड़, कई मौसम गुजरे,
लौटकर आया नही ,छोड़ के जाने वाला ।
मैं उसे चाँद भला कैसे लिखूँ, बोलो तो,
मैं नही उसमे कोई दाग दिखाने वाला।
शहर में हर तरफ गुबार धुएँ का क्यो है,
नजर आया न कोई आग लगाने वाला ।
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी