कविता : जज्बातों की दीवानगी
समुन्दर हूँ,लहरों से यूँ रगबत रखता हूँ,
मैं तूफाँ से खेलने की फितरत रखता हूँ।
मैं इक जर्रा हूँ, पर कुछ वजूद रखता हूँ,
आसमां को छूने की ख़्वाहिश रखता हूँ।
ख़ामोशी से जीने की यूँ अदा रखता हूँ,
मैं लफ़्ज़ों की गहरी समझ रखता हूँ।
रगों में बहता हर कतरा रूहानी है,
मैं ज़ज्बातों की दीवानगी रखता हूँ।।
— विधिशा राय