कविता : सम्भावना बाकी है
मौत का मंजर फ़िज़ाओं में,
पर
इक ज़िन्दगी की खनक बाकी है;
अभी सम्भावना बाकी है।।
छा गया पतझड़ हर उपवन में,
पर
इक कोंपल की महक बाकी है;
अभी सम्भावना बाकी है।।
तन्हाइयों का ख़ौफ़ हवाओं में,
पर
इक मासूम हँसी की खनक बाकी है;
अभी सम्भावना बाकी है।।
गहन तिमिर सुप्त वादियों में
पर
इक नन्ही किरण की चमक बाकी है;
अभी सम्भावना बाकी है।।
बंद हो गए बातों के पिटारे
पर
इक अबूझ पहेली बाकी है;
अभी सम्भावना बाकी है।।
— विधिशा राय