गीत – शाश्वत सत्य
जीवन का प्रतिपल विशेष है, जब तक हिय में नेह -लेश है।
बादल कितनी कमर कसें पर, लुप्त हुआ क्या कभी दिवाकर?
रात अमावस की छा जाती, किन्तु पूर्णिमा छुप क्या पाती?
गहन कालिमा – हरण हेतु ही, मन्दहास करता निशेश है।।
जब तक हिय में नेह – लेश है।। जीवन का ••••••••
शब्दों की अपनी गरिमा है, भावों की अनुपम महिमा है।
मृदु मंत्रों के पुष्पहार से, अनघ हृदय सत शुभ विचार से।
प्राण – युक्त होती प्रतिमा भी, नर ! नारायण तू महेश है।।
जब तक हिय में नेह- लेश है।। जीवन का •••••••
अलख निरखते मर्महीन हैं, कुछ अज्ञानी दग्ध – दीन हैं।
शूल लिये कटु तीक्ष्ण विषैले, तज कर ममता हुए कसैले।
कर्म – कथन में जिनके अन्तर, निस्पन्दन ही मात्र शेष है।।
जब तक हिय में नेह -लेश है।। जीवन का ••••••••
जन्म-मरण का भय क्या करना, क्या डरना क्यों किससे डरना?
विधि का अजब खेल है देखा, पुण्य – पाप का अद्भुत लेखा।
जीवन – घट अनुराग – उदधि से, कर अर्जन अक्षय निवेश है।।
जब तक हिय में नेह-लेश है।। जीवन का •••••••••••
वसुधा – वल्लभ वरुण – वृष्टि से, हो प्रमुदित नभ- प्रणय- दृष्टि से।
सदा वर्तिका शलभ वरण कर, दिव्य प्रीति देती हैै जलकर।
कृष्ण – राधिका ‘अधर’ बाँसुरी, पूज्य प्रेम का अतुल वेश है।।
जब तक हिय में नेह-लेश है।। जीवन का ••••••••••
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’