लखनऊ में नवगीत महोत्सव का भव्य आयोजन
लखनऊ: २५ तथा २६ नवम्बर २०१७ को अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा ओमैक्स सिटी (शहीद पथ) में स्थित गुलमुहर ग्रीन स्कूल के भव्य सभागार में नवगीत महोत्सव का सफल आयोजन किया गया। नवगीत को केन्द्र में रखकर आयोजित होने वाला यह उत्सव वैचारिक संपन्नता के साथ साथ नवगीत को मीडिया एवं कला के विभिन्न उपादानों से जोड़ने के लिये जाना जाता है। नवगीत की पाठशाला के नाम से वेब पर नवगीतों के विकास में संलग्न अभिव्यक्ति विश्वम द्वारा आयोजित शृंखला का यह छठा कार्यक्रम था।
नवगीत समारोह का शुभारम्भ सर्वश्री योगेन्द्र दत्त शर्मा, निर्मल शुक्ल, संजीव सलिल, रमेश गौतम, अशोक कुमार, जगदीश पंकज, प्रवीण सक्सैना एवं जगदीश व्योम के कर-कमलों से दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। आरती मिश्रा एवं श्वेता मिश्रा द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वन्दना के उपरान्त ‘रंग-प्रसंग’ के अंतर्गत सर्वश्री बालगोपालन, डायना महापात्रा, दुर्गाप्रसाद बंदी, दिव्या पांडेय, गिरीश बहेरा, मेघांश थापा, मुकेश साह, राहुल जैन, विनय अंबर, योगेश प्रजापति, अशोक शर्मा, अमित कल्ला एवं विजेंद्र विज द्वारा बनायी गयी कलाकृतियों के साथ विभिन्न नवगीतों पर आधारित पोस्टर प्रदर्शनी का उद्घाटन किया गया।
प्रथम सत्र में नवगीत की पाठशाला से जुड़े नये रचनाकारों द्वारा अपने दो-दो नवगीत प्रस्तुत किये गये। नवगीत पढ़ने के बाद प्रत्येक के नवगीत पर वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा टिप्पणियाँ की गयीं, इससे नये रचनाकारों को अपनी रचनाओं को समझने और उनमें यथोचित सुधार का अवसर मिलता है। कल्पना मनोरमा जी के नवगीतों पर सर्वश्री संजीव वर्मा सलिल एवं रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’ ने टिप्पणियाँ की, त्रिलोचन कौर के नवगीतों पर सर्वश्री योगेंद्रदत्त शर्मा एवं राम गरीब ‘विकल’ ने अपनी टिप्पणियाँ की, धीरज मिश्र के नवगीतों पर सर्वश्री निर्मल शुक्ल एवं जगदीश पंकज द्वारा एवं नीरज द्विवेदी की रचनाओं पर सर्वश्री वेदप्रकाश शर्मा वेद एवं रमेश गौतम द्वारा विचार रखे गये। इस मध्य कुछ अन्य प्रश्न भी नये रचनाकारों से श्रोताओं द्वारा पूछे गये, जिनका उत्तर वरिष्ठ रचनाकारों द्वारा दिया गया। प्रथम सत्र के अन्त में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ से डॉ अशोक कुमार ने गीत और नवगीत में अन्तर स्पष्ट करते हुए बताया कि नवगीत हिन्दी साहित्य की अविभाज्य विधा है और इस पर विश्वविद्यालों में व्यापक शोधकार्य हो रहा है। उन्होंने नवगीत के विकास में आने वाली बाधाओं, बाजारवाद, सरकारी उपेक्षाओं की बात करते हुए प्रकाशकों से सहयोग का अनुरोध भी किया।
दूसरे सत्र में वरिष्ठ नवगीतकारों द्वारा अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया गया, ताकि नये रचनाकार नवगीतों के कथ्य, लय, प्रवाह, छन्द आदि को समझ सकें। नवगीत पाठ के बाद सभी को प्रश्न पूछने की पूरी छूट दी गई जिसका लाभ नवगीतकारों ने उठाया। इस सत्र में सर्वश्री निर्मल शुक्ल (लखनऊ, उ.प्र.), योगेन्द्र दत्त शर्मा (गाजियाबाद, उ.प्र.), डॉ रामसनेहीलाल शर्मा यायावर (फिरोजाबाद, उ.प्र.), शीलेन्द्र सिंह चौहान (लखनऊ, उ.प्र.), वेदप्रकाश शर्मा ‘वेद’ (गाजियाबाद, उ.प्र.), संजीव वर्मा ‘सलिल’ (मंडला, म.प्र.), मायामृग (जयपुर, राजस्थान), राजा अवस्थी (कटनी, म. प्र.), जगदीश पंकज (गाजियाबाद, उ.प्र.), रमेश गौतम (बरेली, उ.प्र.), संजय शुक्ल (गाजियाबाद, उ.प्र.), शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ (मेरठ, उ.प्र.) और राम गरीब ‘विकल’ (सीधी, म.प्र.) ने अपने प्रतिनिधि नवगीतों का पाठ किया। कार्यक्रम की समापन वेला में डॉ विनोद निगम (होशंगाबाद, म.प्र.) एवं डॉ धनञ्जय सिंह (गाजियाबाद, उ.प्र.) ने काव्य-रसिकों के आग्रह पर एक-एक नवगीत सुनाकर मंत्रमुग्ध कर दिया।
तीसरा सत्र नवगीतों पर आधारित संगीत संध्या का था, जिसमें लखनऊ से सम्राट राजकुमार के निर्देशन में विभिन्न कलाकारों ने नवगीतों की संगीतमयी प्रस्तुति की। तारादत्त निर्विरोध के नवगीत धूप की चिरैया को स्वर दिया आरती मिश्रा ने, कृष्णानंद कृष्ण के गीत पिछवारे पोखर में को स्वर दिया पल्लवी मिश्रा ने, माहेश्वर तिवारी के गीत मूँगिया हथेली को समवेत स्वरों में प्रस्तुत करने वाले कलाकार रहे- आरती मिश्रा, पल्लवी मिश्रा, चंद्रकांता चौधरी, सुजैन और श्वेता मिश्रा। पूर्णिमा वर्मन के गीत सॉस पनीर को स्वर दिया निहाल सिंह ने तथा विनोद श्रीवास्तव के गीत छाया में बैठ एवं माधव कौशिक के गीत चलो उजाला ढूँढें को स्वर दिया अभिनव मिश्र ने। तालवाद्य पर विशाल मिश्रा, की-बोर्ड पर स्वयं सम्राट राजकुमार और गिटार पर विनीत सिंह ने संगत की।
कार्यक्रम का विशेष आकर्षण डॉ रुचि खरे (भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय, लखनऊ, उ.प्र.) द्वारा ‘कत्थक नृत्य’ रहा, जिसके अंत में उन्होंन संध्या सिंह के नवगीत हाथ में पतवार होगी तथा पूर्णिमा वर्मन के नवगीत फूल बेला पर प्रस्तुति दी। नवगीत पर आधारित कत्थक का यह प्रयोग बहुत लोकप्रिय रहा। कार्यक्रम के अंत में भातखंडे विश्वविद्यालय की भूतपूर्व उपकुलपति एवं कत्थक विशेषज्ञ डॉ. पूर्णिमा पांडे द्वारा नवगीतकार पूर्णिमा वर्मन के नवगीत मंदिर दियना बार पर नृत्य प्रस्तुत कर सबको आह्लादित कर दिया। नृत्य के साथ तबले पर राजीव शुक्ला, सारंगी पर पं. विनोद मिश्र एवं हारमोनियम पर मोहम्मद इलियाज खाँ ने संगत की। संगीत मोहम्मद इलियाज खाँ का था जिसे स्वर से सजाया था स्वयं मोहम्मद इलियाज खाँ के साथ निकी राय ने।
दूसरे दिन का पहला और कार्यक्रम का चौथा सत्र अकादमिक शोधपत्रों के वाचन का था। पहला शोधपत्र- ‘नवगीतों में ग्रामीण परिवेश की खोज’ पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में शोधार्थी श्री अनिल कुमार पांडेय ने पढ़ा। दूसरा, भावना तिवारी जी द्वारा ‘नवगीतों में महिला रचनाकारों का योगदान’ पर प्रस्तुत किया गया। दोनों आलेख सरस, रोचक और ज्ञानवर्धक रहे। तीसरा शोध पत्र श्री वेदप्रकाश शर्मा ‘वेद’ द्वारा प्रस्तुत किया गया। शीर्षक था- ‘नवगीत का सौंदर्य औदात्य।’ यह शोधपत्र श्री देवेन्द्र शर्मा ‘इंद्र’ के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केंद्रित था। अन्त में सीधी जनपद से पधारे श्री राम गरीब ‘विकल’ ने ‘लोक चेतना के संवाहक नवगीत’ पर उम्दा व्याख्यान प्रस्तुत किया।
पाँचवा सत्र २०१६ एवं २०१७ में प्रकाशित नवगीत संग्रहों की समीक्षा पर केन्द्रित रहा। इस सत्र का उद्देश्य विगत वर्ष में प्रकाशित नवगीत संग्रहों-संकलनों का लेखा-जोखा करना तथा उपस्थित श्रोताओं में उनका परिचय प्रस्तुत करना होता है। साथ ही इसमें नवगीत संग्रहों का लोकार्पण भी होता है। इस सत्र में श्री निर्मल शुक्ल द्वारा २०१६ में प्रकाशित नवगीत संग्रहों पर विहंगम दृष्टि डाली गयी, जबकि श्री संजय शुक्ल ने दो दर्जन से अधिक नवगीत संग्रहों का उल्लेख किया, जिनका प्रकाशन २०१७ में हुआ था। इसके साथ ही मालिनी गौतम जी के नवगीत संग्रह ‘चिल्लर सरीखे दिन’ पर श्री अनिल कुमार पांडेय ने समीक्षा प्रस्तुत की और संध्या सिंह जी के नवगीत संग्रह ‘मौन की झंकार’ पर लखनऊ से ही डॉ अनिल कुमार मिश्र ने सारगर्भित टिप्पणी की। शुभम श्रीवास्तव ओम के नवगीत संग्रह ‘फिर उठेगा शोर एक दिन’ पर आचार्य संजीव सलिल ने अपने विचार प्रस्तुत किया। इस सत्र में बी एल राही जी के गीत संग्रह ‘तड़पन’ का भव्य लोकार्पण किया गया। सत्र के बाद सभी का सामूहिक चित्र लिया गया।
छठे सत्र में दो नवगीतकारों को अभिव्यक्ति विश्वम् के नवांकुर पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
यह पुरस्कार प्रतिवर्ष उस रचनाकार के पहले नवगीत-संग्रह की पांडुलिपि को दिया जाता है, जिसने अनुभूति और नवगीत की पाठशाला से जुड़कर नवगीत के अंतरराष्ट्रीय विकास की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। पुरस्कार में ११०००/- भारतीय रुपये, एक स्मृति चिह्न और प्रमाणपत्र प्रदान किये जाते हैं। आयोजन में २०१६ का नवांकुर पुरस्कार संध्या सिंह जी को उनकी कृति- ‘मौन की झंकार’ तथा २०१७ का नवांकुर पुरस्कार शुभम श्रीवास्तव जी को उनके संग्रह- ‘फिर उठेगा शोर एक दिन’ पर प्रदान किया गया। दोनों पुरस्कार उपस्थित अतिथियों, नवगीतकारों एवं नवगीत समीक्षकों की उपस्थिति में प्रदान किये गए।
पुरस्कार वितरण के बाद काव्य सत्र के विशिष्ट अतिथि श्री श्याम श्रीवास्तव ‘श्याम’ एवं कत्थक गुरू डॉ. पूर्णिमा पांडे रहे। श्रीवास्तव जी के नवगीत ने सभी उपस्थित रचनाकारों को आनंदित किया। इसके बाद सभी उपस्थित रचनाकारों ने अपने एक-एक नवगीत का पाठ किया। इस अवसर पर उपस्थित प्रमुख रचनाकार थे- लखनऊ से अनंतप्रकाश तिवारी, संध्या सिंह, आभा खरे, सीमा मधुरिमा, राजेन्द्र वर्मा, डॉ प्रदीप शुक्ल, रंजना गुप्ता, शीला पाण्डेय, राजेन्द्र शुक्ल राज, रामशंकर वर्मा, मीरजापुर से शुभम श्रीवास्तव ओम और आज़ाद आलम, नॉयडा से डॉ जगदीश व्योम और भावना तिवारी, दिल्ली से विजेंद्र विज, मुरादाबाद से अवनीश सिंह चौहान, गाजियाबाद से योगेन्द्रदत्त शर्मा, वेदप्रकाश शर्मा वेद, जगदीश पंकज एवं संजय शुक्ल और कटनी से राजा अवस्थी, बरेली से रमेश गौतम, मेरठ से शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’, जबलपुर से संजीव वर्मा सलिल, सीधी से राम गरीब विकल, फीरोजाबाद से डॉ राम सनेहीलाल शर्मा यायावर, शारजाह से पूर्णिमा वर्मन, होशंगाबाद से डॉ विनोद निगम, प्रतापगढ़ से रविशंकर मिश्र, जयपुर से अमित कल्ला आदि के साथ डॉ एस एन सिंह, डॉ संदीप शुक्ला, श्वेता आदि की भी उपस्थिति रही। सभी सत्रों का शानदार संचालन अवनीश सिंह चौहान ने किया। अन्त में पूर्णिमा वर्मन तथा प्रवीण सक्सेना ने सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रस्तुति– अवनीश सिंह चौहान