नौकर
रसोईघर में काम कर रही आया कलावती को सात वर्षीय राजू बड़े ध्यान से देख रहा था । अपनी तरफ राजू को देखते हुए पाकर कलावती ने स्नेह से पूछा ” क्या हुआ राजू बाबा ? क्या देख रहे हो ? कुछ चाहिए था क्या ? ”
” नहीं तो ! एक बात कहूँ आंटी ? ”
” कहो ! ”
” आप बहुत अच्छी हो ! ”
” अच्छा ! ”
” हाँ । अब देखो न आप कितना काम करती हो । और मुझे भी कितना प्यार करती हो । ”
” वो इसलिए राजू बाबा कि मेरे भी आपकी ही तरह दो प्यारे प्यारे बच्चे हैं । ”
” तो क्या आप भी अपने बच्चों को प्यार नहीं करतीं ? ”
” करती हूं न ! हर माँ बाप अपने बेटे को बहुत प्यार करते हैं । ”
” नहीं ! यह झूठ है । मेरे मम्मी पापा को तो मुझसे प्यार करने की फुर्सत ही नहीं है । ”
” नहीं बेटा ! ऐसा नहीं कहते । मम्मी पापा आपके लिए ही तो इतना काम करते हैं । आपको सब कुछ अच्छा अच्छा मिलता है । घर में नौकर चाकर हैं ….”
” तो आंटी आपके घर में कितने नौकर हैं ? आप भी तो इतना काम करती हैं । “
मार्मिक लघुकथा
हार्दिक आभार आदरणीय !
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, नौकरों के सहारे पल रहे, माता-पिता के प्यार को तरसते बच्चों की भावुकता को दर्शाती हुई अत्यंत मार्मिक, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन व धन्यवाद.
आदरणीय बहनजी ! अपनी भौतिक जरूरतें पूरी करने के लिए महानगरों में पति पत्नी मशीन की तरह काम में लगे रहते हैं । उनके पास पारिवारिक जरूरतों के लिए समय नहीं होता जबकि बालमन सभी स्थितियों का आकलन करते रहता है । सुंदर व सटीक प्रतिक्रिया के लिए आपका हृदय से धन्यवाद ।
राजकुमार भाई , लघु कथा बहुत अछि लगी .कई बच्चे बहुत सैन्स्तिव होते हैं .अगर माँ बाप धिआन नहीं देते तो वोह बागी हो सकते हैं जैसे फिल्म शराबी में अमिताबचन का किरदार है .
आदरणीय भाईसाहब ! बहुत सही कहा आपने ! बच्चे बहुत संवेदनशील होते हैं और मन ही मन बहुत कुछ सोचते रहते हैं । यहां नन्हा राजू यही सोच रहा है कि जैसे हमारे घर में नौकर हैं नौकरानी कलावती के घर पर भी उसके बच्चों की देखभाल के लिए नौकर होंगे । अति सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद !