“गीतिका”
मापनी- 1222 1222 1222
पुकारे गोपियाँ कान्हा मुरारी हो
नचाते अब कहाँ ग्वाला मदारी हो
बजाते किस गली बंसी रसीली तुम
गिराते पर कहाँ दहिया अनारी हो।
गए वो दिन विरानी हो गई रतिया
चराते तुम कहाँ गैया पुरारी हो॥
मिले गोकुल गली में भर दिये खुशियाँ
निभाने को कभी आना कछारी हो॥
कभी आओ हिया मनमोहना नगरी
सखी पन डगर पनिहारी पुकारी हो॥
भयो अँधियार अंजोर करो बखरी
निशा घिरि आ गई संझा कुमारी हो॥
मना लूँ मन रमा लूँ चित सवरिया से
लगा लूँ स्नेह उभरे मन मझारी हो॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी