कविता

रौद्र रस (चौपाई)

नर नारी चित बचन कठोरा, बिना मान कब गुंजन भौंरा

कड़ी धूप कब लाए भोरा, रौद्र रूप काहुँ चितचोरा।।-1

सकल समाज भिरे जग माँहीं, मर्यादा मन मानत नाहीं

यह विचार कित घाटे जाहीं, सबकर मंशा वाहे वाही।।-2

प्राणी विकल विकल जल जाना, बिना मेह की गरजत बाना

अगर रगर चौमुखी विधाना, भृगुटी तनी बैर पहचाना।।-3

पौरुष कबहुँ न करे बहाना, क्रोध छोछला बिगरे माना

घेरि घेरि कर बात बनाना, हाव भाव अरु रोष रिसाना।।-4

अंत समय चढ़ि मुर्छा धाए, बिना काम के प्राण गवाए

मत कर क्रोध न धोध सुहाए, सनक सवार बैठ पछताए।।-5

दे दे ताली जो ललकारे, समझो ता शर शनिचर भारे

दूर करो तिन बिना विचारे, सदा रहो प्रिय सुखी सुखारे।।-6

“गौतमरौद्र रूप न भाए, बद नेकी अनुरूपहि छाए

धरम करम मंशा गुन गाए, राग विराग समझ जब आए।।-7

 

महातम मिश्र गौतमगोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ