प्रकृति की सीख
प्रकृति ने दिया है भरपूर
कभी किया नहीं संचित
जितना जो ग्रहण कर सके
दिया बिना भेदभाव किये
बांट देती है अपना सब कुछ
कभी देखा है किसी ने
सागर को अपने लिये कुछ रखते
वह तो समेटे रहता है अपने संसार में
जीव-जन्तु और सीपियाँ
दे देता है अनमोल रत्न
नदियाँ अपनी सभी सीमाओं को तोड़
जीवन धारा बन जाती है
चाँद अपनी चाँदनी को नहीं सहेजता
बांट देता है उसका उजास और शीतलता
सूरज की तपिश को भी महसुस किया है
नहीं छुपाया है कुछ अपने लिये
माँ भी धरा की तरह
बरसाती है नेह अपनी संतानों पर
नहीं करते ये सब बटवारा
बांटते हैं सब कुछ सभी में
जो जितना और जैसा ग्रहण कर सकें
फिर क्यों हिस्से बंटवारे की बातें
प्रकृति की सीख भी यही है
जो यहाँ का है यहीं रहना है।।