हार जीत के फैसले और आत्मघाती गोल
खिलाड़ी उस समय हँसी का पात्र बन जाता है जब वह आत्मघाती गोल कर अपनी ही टीम के लिए पराजय का द्वार खोल देता है और अपनी टीम,अपने प्रशंसकों के आक्रोश का शिकार हो जाता है।प्रश्न यही है कि क्या कभी कोई खिलाड़ी अपनी ही टीम की पराजय का कारण बनना चाहेगा?आप कह सकते हैं कि नहीं ऐसा कोई खिलाड़ी क्योंकर करना चाहेगा !लेकिन नहीं भाई,कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मेरा हक किसी ने मारा है तो क्यों न उसकी भी भद्द उड़ा दी जाए।खेल खेलने वाले के साथ कभी-कभी अत्यधिक उत्साह में इस तरह की गुस्ताखी हो जाया करती है ।कभी-कभी ऐसा भी होता है कि खिलाड़ी करना क्या चाहता है और हो क्या जाता है।
खेल की दुनिया भी बड़ी विचित्र है।सामान्यतः डिफेन्सिव गेम में ही आदमी सुसाइडल गोल कर जाता है अर्थात जब लगता है कि सामने वाली टीम की अग्रिम पंक्ति ने पूरी तरह से घेर लिया है और सुरक्षा पंक्ति बचाव करने में असमर्थ है तो अपने गोलकीपर को गेंद देने के चक्कर में गेंद गोल पोस्ट में समा जाती है और टीम गोल खा जाती है।खैर,आत्मघाती गोल तो कई तरह से हो जाते हैं।इंसान की जिंदगी भी तो एक खेल ही है जिसमें आक्रामकता के साथ बचाव की मुद्रा में भी रहना पड़ता है, ऐसे में कब आत्मघाती गोल हो जाए,कह नहीं सकते और फिर राजनीति का खेल तो बहुत ही निराला है।इस खेल में व्यक्ति जब अच्छे से खेलने लगता है तो अति उत्साह में यदि क्रिकेट हो तो हिट विकेट भी हो जाता है या फूटबाल के गेम की तरह अपने ही गोल पोस्ट में गोल दाग देता है।अभी हाल ही का वाकया कुछ ऐसा ही हुआ है जहाँ एक राज्य के चुनाव में दोनों ही दल के कप्तान अच्छा खेल रहे हैं, दोनों ही आक्रामक मुद्रा के साथ एक दूसरे की गोल पोस्ट में गेंद डालने का प्रयास कर रहे थे और नतीजे के बारे में सीधे-सीधे कोई कयास लगाया जाना संभव भी नहीं हो पा रहा था, ऐसे में एक खिलाड़ी ने अनजाने में ही आत्मघाती गोल कर दिया।अब खेल का नतीजा कुछ भी हो, भले ही उस खिलाड़ी को बाहर बैठा दिया गया हो और उसने अपनी टीम से माफी मांगते हुए कह दिया हो कि वह गेंद सही तरीके से समझ नहीं पाया था, तब भी क्या आत्मघाती गोल वापस हो सकता है!दोनों टीमों के प्रदर्शन से हर बार यही लगता रहा कि ये आत्मघाती गोल ही मार रहे हैं, शायद उनमें काम्पीटिशन चल रही है लेकिन फिर भी किसी न किसी तरह से अपना बचाव कर ही रहे हैं।ऐसी स्थिति में क्या कहा जाए कि प्रशिक्षण का अभाव है, तालमेल का अभाव है या फिर नूरा कुश्ती है।
खैर,अभी तो हाल यह है कि हरेक खिलाड़ी आत्मघाती गोल दागने में लगा है।खेल में तो ऐसी ऊँच-नीच चलती रहती है लेकिन राजनीति के खेल में ऐसी ऊँच-नीच आत्मघाती होती है जबतक कि यह प्रायोजित न हो।अभी तो ऊँच-नीच का खेल बदस्तुर जारी है।सही-गलत का फैसला वास्तविक जीवन का अम्पायर ऊपर वाला करता है तो राजनीति के खेल की अम्पायर आम जनता है जिसे फैसला देना है जिन्होंने आत्मघाती गोल किया है वे परिणाम का इंतजार करें।