लघुकथा

तलाक़ की मोहर

अपने रिश्ते पर तलाक की मोहर लगवा कर कोर्ट से बाहर आये अभिषेक एवं शिखा  और अलग-अलग रास्ते पर चल दिये।

ऑटो रिक्शा में बैठी शिखा के दिल-दिमाग में अभिषेक से प्रथम परिचय  से ले कर शादी तक के तमाम दिन जैसे जीवंत हो उठै थे ।दोनों का एक-एक पल शिद्दत से सिर्फ और सिर्फ एक-दूजे के लिए ही था।और यह प्यार चौगुना हो उठा जब दो बरस बाद उनके घर एक नन्हे-मुन्ने की किलकारी गूँजी।अभिषेक ने अपने प्यार के उस फूल का नाम अनुराग  रखा।खुशियों से खिलखिलाते-गुनगुनाते दिन गुजर रहे थे कि…

एक रविवारीय दोपहरी को अभिषेक अनु को ले कर पार्क गये हुए थे और शिखा खाने की तैयारी कर रही थी कि उसके दूपट्टे ने आग पकड़ ली और अभिषेक के लौटने तक वह बुरी तरह जल चुकी थी। इलाज चला और एक दिन वह ठीक भी हो गयी पर बदन और चेहरे पर बहुत से दाग रह गये और यही दाग उनके बीच अलगाव की गहरी खाई खोद गये।अभिषेक  अपनी जिंदगी में कोई ‘ दूसरी ‘ ले आये और•••और•••उसे  अब अपनी नहीं अनु  की फिक्र थी कि कोर्ट द्वारा तय उसके पालन के लिए मिलने वाली छोटी सी रकम से कैसे उसे उजला भविष्य दे पायेगी?

” बहन जी! किस जगह उतरेंगी आप?” ऑटो वाले का स्वर शिखा को वर्तमान में ले आया,” जी भैया जी!यहीं उतरना है मुझे।”

मुर्झाए मन से सीढ़ियाँ चढ़ रही थी कि  सामने से आती मीरा बेन ने उसके हाथ में एक खाकी लिफाफा थमाते हुए कहा,” शिखा बेन ! यह कोरियर वाला दे गया है।कहे रहा था बहुत जरूरी चिठ्ठी है उनके ही हाथ में देना।”

” हे भगवान कोई खैर खबर देना”,कहते हुए वहीं खड़े-खड़े शिखा ने धड़कते दिल के साथ लिफाफा खोला तो उछल पड़ी, ” मीरा बेन! मेरा अपाइंटमेंट लैटर है विप्रो में मैनेजर की पोस्ट के लिए।” और वह ख़ुशी  में उनसे लिपट गई।

 

 

कल्पना भट्ट

कल्पना भट्ट श्री द्वारकाधीश मन्दिर चौक बाज़ार भोपाल 462001 मो न. 9424473377