गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल -फिर कोई सिक्का उछाला जा रहा है

फिर कोई सिक्का उछाला जा रहा है ।
रोज मुझको आजमाया जा रहा है ।।

मानिये सच बात मेरी आप भी कुछ ।
देश को बुद्धू बनाया जा रहा है ।।

कौन कहता है यहां सब ठीक चलता ।
हर गधा सर पे बिठाया जा रहा है।।

हो रहे मतरूक सारे हक यहां पर।
राज अंग्रेजों का लाया जा रहा है।।

हर जगह रिश्वत है जिंदा देखिये तो।
खूब बन्दर को नचाया जा रहा है ।।

कुछ हिफाज़त कर सकें तो कीजिये अब ।
बेसबब ही जुल्म ढाया जा रहा है ।।

इंतकामी हौसलों के साथ देखो ।
मुल्क को नस्तर चुभाया जा रहा है ।।

लूट का जिन पर लगा इल्जाम था कल ।
फिर इलक्शन में जिताया जा रहा है ।।

कल तलक नजरों में था जो इक खुदा सा।
आज नजरों से उतारा जा रहा है ।।

क्या लियाकत आदमी की है यहां पर ।
आइना खुलकर दिखाया जा रहा है ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]