कविता

मेरा गांधी से प्रश्न

धुंध भरी रात है ,स्याह अंधकार है
दूर दूर तक नही,जीव का निशां है
हाथ हाथ को नही यहां पहचानता
शब्द भी यहां नही कोई है जानता
साथ साथ थे चले मंजिले एक थी
फिर अचानक क्या हुआ ?
बिखर गया कारवाँ
विवेक शून्य बुद्धि पर डेरा जमाये है तमस
गहन अंधकार है मनु मनु बना दुश्मन
विचार मध्य छिड़ा यह द्वंद्व अंधकार है
एक माँ के हैं पुत्र वह अलग क्यों हुये
एक जननी मानता तो दूसरा दुत्कारता
वंदे मातरम् कहना जहां अभिशाप है
माँ को बांटना अभिव्यक्ति की आजादी है
दुर्बुद्धि लोग बने प्रबुद्ध कोसते है देश को
कोई उनसे पूछे ले क्या यही राष्ट्र  आराधना?
तुष्टिकरण की नींव पर बंटा था यह देश
मानवता कांप उठी लहू का रंग हुआ सफेद
आदमी चीर दिये औरतें लुट गई
मारकाट यूँ मची धर्म के नाम पे
तुम शांत बुत बने आंख मूंद पड़े रहे
महात्मा का रूप धर धृतराष्ट्र बने रहे
सत्य के पुजारी तुम असत्य में जिये
यही अंधकार है यही अंधकार है
नफरत की पौध को सींचा तुमने हिंदुओं के खून से ,
तुम्हारी लगाई आग से देश प्रदेश जल रहे
शांति दूत बन और सब सहते रहे
वे कुचक्र रचते रहे और दमन करते रहे
हम अंधकार में जी  और मर रहे यहाँ
स्वर्ग की धरती से हमें विहीन कर दिया
अपने ही घर मे हम आज अजनबी हुये
तुम नही तो आज, इसका कौन जिम्मेदार है?
यही अंधकार है, यही अंधकार है।

— पंकज जोशी

पंकज जोशी

नाम :- पंकज जोशी जन्मतिथि :- 05/02/1973 जन्मस्थान :- लखनऊ शिक्षा :- एम०बी०ए० सम्प्रति :- प्राइवेट नौकरी सम्पर्क सूत्र :- 50, आशुतोष नगर , कृष्णा नगर , लखनऊ । उ०प्र० पिनकोड 226023 मोबाईल :- 09451086321 अन्य प्रकाशित पुस्तकें (अ) साझा नभ का कोना ( हाइकू संग्रह) ISBN No. 978-93-85818-03-5 सम्पादिका श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव रत्नाकर प्रकाशन लखनऊ । (ब) कलरव (क्योका संग्रह) ISBN No. 978-93-85818-06-6 सम्पादिका श्रीमती विभा रानी श्रीवास्तव ऑनलाइन गाथा प्रकाशन , लखनऊ ।