कविता – इंद्रधनुष रूपी प्रेम
इंद्रधनुष सा प्रेम मेरा
रंगों से परिपूर्ण है
ठीक वैसे ही जैसे
जिन्द्गी एक रंगमंच
जहा रोज़ नये रंग
मंच पर उभर आते हैं !
ठीक वैसे ही जैसे
जैसे मछली के लिये
जल ही जीवन
मेरा प्रेम मेरा जीवन है
जो तुमसे परिपूर्ण है
तुम वही रंग हो
हां वही
जिसे देख मन झूम उठता है
गा उठता है, नाच उठता है
ठीक वैसे ही जैसे
बारिश में बावरा मोर
नाच नाचकर
अपना प्रेम
उन बून्दों के लिये झलकाता है
ये इंद्रधनुष एक कडी है
जो धरती आस्मां को जोड़ती है
अलग अलग रंग लिये
वैसे ही मेरा प्रेम है नूतन’
जो हम दोनों को परस्पर
चुम्बक की तरह जोड़कर रखा है
हां यही तो इंद्रधनुष रूपी प्रेम है !
— जयति जैन नूतन