कविता

कोई समझाओ तो……

खिज़ा निकली है तलाश में बहारों की
मौसम गमों से सरद है कोई समझाओ तो…
यूं ही कोई उदास नहीं होता
किसी को खोने का गम है इसे बताओ तो…
क्यों करे गिले शिकवे
यह वक्त की चोट है कोई समझाओ तो..
उठ तलाश ले खुद के हिस्से का सकून
यहां कोई हमसफर नहीं इसे समझाओ तो….
बिखर मत पुर्जा पुर्जा होकर
तू तो जिंदादिल है इसे समझाओ तो…..
भले छा जाए कोहरा गमों का
पर तू मुस्कराए जा कोई इसे समझाओ तो …..!

विजेता सूरी

विजेता सूरी निवासी जम्मू, पति- श्री रमण कुमार सूरी, दो पुत्र पुष्प और चैतन्य। जन्म दिल्ली में, शिक्षा जम्मू में, एम.ए. हिन्दी, पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक उपाधि, वर्तमान में गृहिणी, रेडियो पर कार्यक्रम, समाचार पत्रों में भी लेख प्रकाशित। जे ऐंड के अकेडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेजिज जम्मू के 'शिराज़ा' से जयपुर की 'माही संदेश' व 'सम्पर्क साहित्य संस्थान' व दिल्ली के 'प्रखर गूंज' से समय समय पर रचनाएं प्रकाशित। सृजन लेख कहानियां छंदमुक्त कविताएं। सांझा काव्य संग्रह कहानी संग्रह प्रकाशित।