दर्द
गज़ब का खेलता है
मेरे साथ
हरदम
हर दिन
हर पल
शायद ज़िंदगी भर साथ निभाएगा
चलो,
कोई तो है न !
ज्यादा मत सोचिए साहब !
और तो कौन होगा?
अपने रुप बदलकर लौट आता है
बहुरुपिया बनकर
दर्द ही तो है… !
— पंकज त्रिवेदी
गज़ब का खेलता है
मेरे साथ
हरदम
हर दिन
हर पल
शायद ज़िंदगी भर साथ निभाएगा
चलो,
कोई तो है न !
ज्यादा मत सोचिए साहब !
और तो कौन होगा?
अपने रुप बदलकर लौट आता है
बहुरुपिया बनकर
दर्द ही तो है… !
— पंकज त्रिवेदी