ग़ज़ल
खूब लूटा सियासत ने आदमी को।
राज पाट लूटा सारा और जान भी।।
कितने ही सुरा सुंदरी में हुए बर्बाद।
कितनों ने छुप कर लूटी आन भी।।
घमंड में चूर – चूर हुए ख्वाब सारे ।
और आदमी की ये झूंठी शान भी।।
मिट गई सारी हस्ती इस जहां से।
और न रही अब कोई पहचान भी।।
छल छदम की राजनीति चली थी।
जिसने ली निर्दोषों की जान भी।।
कितने ही जौहर हुए सती हुई थी।
पुरोहित मगर सच्ची आन बान थी।।
— कवि राजेश पुरोहित