ग़ज़ल
लोगों में अपनेपन का अब भाव नहीं रहा।
परिवार टूटने का यही कारण खास रहा।।
मिलते नहीं बिना मतलब के यहाँ कोई।
हर कोई रुपये पैसे का यहाँ दास रहा।।
भाव नहीं तो मिठास कहाँ दिखेगी यहाँ।
रिश्तों का इसी कारण होता नाश रहा।।
पहले रिश्ते समर्पण से निभाये जाते।
इसीलिए जमुना तट पर होता रास रहा।।
दो जून की रोटी नहीं मिलती जिसे दोस्तों।
उसी का पुरोहित कच्चे घरों में वास रहा।।
— कवि राजेश पुरोहित