कविता

दिसम्बर आ गया

अरे फिर से दिसम्बर आ गया
याद है तुम्हे वो दिन
जब हमदोनो साथ रहते थे तो
ये सर्द हवायें भी
हमारा कुछ नही बिगाड़ती थी
एक ही कमरे में
एक ही चादर में
कैसे लिपटे रहते थें
मैं कैसे भूल सकती हूँ
तुम्हारे आगोश में
बितायें हुये दिसम्बर का महिना
और हा तुम्हारी गर्म सॉसे
किसी अलाव से कम नही
मुझे हर पल गर्मी देते थे
क्या दिन थे वो क्या मौसम थे
शाम को जब एक ही टेबल पर
दो कप चाय की चुश्की लेते थे
तो सच पूछो चाय फिकी होते हुये भी
न जाने क्यो इतना मिठा हो जाता था
वही सब यादें ताजा करने
दिसम्बर ने फिर से दस्तक दी हैं
और हम इन्ही यादों के सहारे
बिता लेंगे खुशी-खुशी इन लम्हो को।
निवेदिता चतुर्वेदी निव्या

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४