“दोहा मुक्तक”
पारिजात सुन्दर छटा, शम्भू के कैलाश।
पार्वती की साधना, पुष्पित अमर निवास।
महादेव के नगर में, अतिशय मोहक फूल-
रूप रंग महिमामयी, महके शिखर सुवास।।
हिमगिरि सुंदर छावनी, देवों का संसार।
कल्पतरु का वास जहाँ, फल फूले साकार।
जटा छटा शिर चाँदनी, पहिने शिव मृगछाल-
नयन रम्यता शिवपुरी, स्वर्गापति साकार।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी