कविता

भारत माता

ज्ञान ध्यान और संस्कार पाने को जो भी ललचाता
असमंजस में झूल रहे सब राह नहीं कोई पाता
इधर उधर मत भटको तुमको राह सही बतलाता हूँ
सीधे आओ भारत, सब कुछ सिखलाती भारत माता ।। १।।
जब पृथ्वी पे लोगो को कुछ कहना भी था ना आता
तब भारत का बच्चा बच्चा गीता रामायण गाता
वेदो को रच ब्रह्म ज्ञान को पृथ्वी भर में  फैलाया
जग को ज्ञान बाटने वाली जग जननी भारत माता ।। २ ।।
तीन दिशाओ से सागर आकर के इसको नहलाता
उत्तर दिशा हिमालय पर्वत प्रहरी बन कर इतराता
और  मरुथल भी इस धरती पर हमको मिल जाता है
और हजारो नदियो की माँ कहलाती भारत माता  ॥ ३ ॥
शेरो के संग खेले बालक जरा भी ना घबराता
जहा सिकंदर की सेना से निर्भिक पोरस भिड़ जाता
सेलुकस अपनी बेटी को भारत में परणाता है
ऐसे वीर चंद्रगुप्तो की जननी है भारत माता ।। ४ ।।

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.