राजनीति

लेख– लोकतंत्र में नागनाथ और साँपनाथ के फ़ेर से नोटा ही बचा सकता है

लोकतंत्र में हर नागरिक को अपने मताधिकार के प्रयोग का अधिकार होता है। साथ में लोकतंत्र में चुनाव के दौरान अपनी पसंद का उम्मीदवार चुनने की आज़ादी भी होती है, लेकिन अगर किसी मतदाता को उसके क्षेत्र में खड़ा कोई उम्मीदवार पसंद नहीं आता, तो वह नोटा के जरिये सभी उम्मीदवारों को नकार सकता है। अगर ऐसे में नोटा को मिले मतों का, मतगणना पर कोई असर नहीं पड़ता । जो कि एक लिहाज से लोकतंत्र में मत की बर्बादी करना ही है। आज लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया में धनबल और बाहुबल का बोलबाला बढ़ रहा है। ऐसे में अच्छे और स्वच्छ छवि के जनप्रतिनिधियों की टोली चुनावों से नदारद होती दिख रहीं है। ऐसे में आवाम को ईमानदार जनप्रतिनिधि नहीं मिल पाता। तो क्यों न नोटा की सार्थकता बढ़ाई जाए। जब उम्मीदवारों के प्रचार-प्रसार पर करोड़ों रुपए ख़र्च हो रहें हैं, तो प्रचार-प्रसार नोटा का भी होना चाहिए। साथ में नोटा विकल्प अगर मिला है, तो उसको लाने का उचित मक़सद भी होना चाहिए।

बीते दिनों सर्वोच्च न्यायालय में एक हलफनामा दायर किया गया, कि जीते गए प्रत्याशी से अधिक मत नोटा को मिलते हैं, तो चुनाव रद्द होना चाहिए। इसके इतर न्यायपालिका का जवाब आया कि, मत प्रणाली में बदलाव लाकर लोकतंत्र को नष्ट नहीं किया जा सकता। न्यायपालिका का यह तर्क संविधान के लिहाज से तर्कसम्मत और संविधान की भावना के अनुरुप है। ऐसे में जब राजनीतिक दलों से अधिक मत नोटा को प्राप्त हो रहें हैं, तो इससे कुछ सवाल तो ज़रूर ख़ड़े होते हैं। जिनका उत्तर ढूढ़ना होगा। जिससे नोटा की प्रासंगिकता भी बनी रहे, और संवैधानिक व्यवस्था की नींव भी। शायद लोकतंत्र में नोटा का विकल्प इसीलिए आया। कि आवाम की पसंद का जनप्रतिनिधि न हो, तो उसका नोटा के द्वारा लोकतांत्रिक तरीके से बहिष्कार हो सके। आज राजनीतिक दल जनप्रतिनिधियों को चुनाव जीतने के लिए खड़ा करती है, न कि उनके व्यक्तित्व आदि पर गौर करती है। ऐसे में नागनाथ और साँपनाथ के फ़ेर में जनता फंस जाती है। ऐसी स्थिति में जो नोटा मतदाता के लिए वरदान साबित होनी चाहिए, उसका कोई विशेष अर्थ निकलता नहीं, क्योंकि नोटा के पक्ष में कितने ही मत हो, उसका मतलब शून्य ही होता है। जब नोटा का अर्थ भी निरर्थक है, फ़िर इसका क्या मतलब। 

वर्तमान समय मे नोटा का प्रचार-प्रसार न होने के कारण नोटा को मिलने वाला मत फ़ीसद काफ़ी कम है, लेकिन नोटा का प्रयोग बढ़ रहा है। जिसको देखते हुए नोटा की प्रासंगिकता और उपयोगिता पर चुनाव आयोग को जोर देना चाहिए। बिहार विधानसभा चुनाव में नोटा को कुल पड़े मत फ़ीसद का 2.5 फ़ीसद प्राप्त होता है। ध्यान दे तो पता चलता है, हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा को कुल 8 लाख 64 हज़ार 856 मत मिले थे , जो नोटा को मिले मत से कम था। लगभग कुछ ऐसी ही स्थिति अन्य राज्यों में भी उभरकर आ रही है। 2014 के आम चुनाव में करीब 60 लाख लोगों ने नोटा का विकल्प चुना। ये 21 पार्टियों को मिले मतों से ज़्यादा था।ऐसे में अगर गुजरात में भाजपा, कांग्रेस के बाद तीसरे नंबर की पार्टी बनकर नोटा उभरा है। तो इसने लोकतंत्र के समक्ष कई ज्वलंत प्रश्न ख़ड़े किए हैं। पहला प्रश्न क्या लोकतंत्र में जनता की नुमाइंदगी करने वाले रहनुमाओं की शख्सियत कमजोर हुई है? इसके पीछे का कारण क्या है, कि आम आदमी, गुजरात में आम आदमी पार्टी से ज़्यादा मत नोटा को देता है? चुनाव आयोग के मुताबिक, गुजरात में नोटा को 1.8 फ़ीसद मत मिले। जो कि बीएसपी और एनसीपी को मिले मतों से कहीं अधिक है। इसके साथ हिमाचल में 0.9 फ़ीसद मत देने का विकल्प नोटा रहा। ऐसे में अब वक्त की मांग शायद यहीं है, कि नोटा के विकल्प की प्रासंगिकता पर जोर दिया जाए। जिसके लिए चुनाव आयोग को विचार-विमर्श करना चाहिए। एक लंबी अदालती लड़ाई के बाद नोटा का अधिकार अगर मिला है, तो उसको उपयोगी बनाने की दिशा में कदम उठाने होंगे। तभी उसकी सार्थकता लोकतंत्र को मजबूत कर पाएंगी। दुनिया के 13 मुल्कों में नोटा का प्रयोग हो रहा है। ऐसे में कुछ शर्तों के साथ नोटा को ताकत देनी चाहिए। जैसे अगर पूरे मत फ़ीसद का 40 से 45 फ़ीसद मत नोटा के पक्ष में पड़े, तो चुनाव निरस्त कर देना चाहिए। औऱ जिन प्रत्यशियों को नोटा से कम मत मिले, उनके चुनावी भविष्य पर लगाम लगनी चाहिए। इसके साथ दुबारा चुनाव में नए युवा प्रत्याशियों को लड़ने का प्रावधान करना चाहिए। जिनके ऊपर किसी तरह का कोई मुकदमा आदि न हो। साथ में शर्त यह भी हो, कि जनप्रतिनिधि शिक्षित हो। इससे जहां पार्टियां अच्छे जनप्रतिनिधियों को खड़ा करने पर मजबूर होगी। तो लोकतंत्र की बहुत सारी समस्याएं ख़ुद-ब-ख़ुद सुलझ जाएंगी। साथ-साथ में मत फ़ीसद में भी बढ़ोतरी भी दिख सकती है। 

महेश तिवारी

मैं पेशे से एक स्वतंत्र लेखक हूँ मेरे लेख देश के प्रतिष्ठित अखबारों में छपते रहते हैं। लेखन- समसामयिक विषयों के साथ अन्य सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर संपर्क सूत्र--9457560896