नवयुग के विधायक आचार्य – महावीर प्रसाद द्विवेदी
हिंदी साहित्य के आचार्य को हम प्रतिवर्ष 21 दिसम्बर को याद करते हैं। द्विवेदी युग के कवि ,साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म रायबरेली उत्तरप्रदेश के दौलतपुर ग्राम में हुआ था। इनके पिता पंडित रामसहाय दुबे कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। बचपन से ही घर मे धन का अभाव था।
हिंदी साहित्य के युग विधायक एक महान साहित्यकार एक कुशल पत्रकार द्विवेदी जी ने देश की साहित्यिक, सांस्कृतिक चेतना को एक नई दिशा देने का कार्य किया था। 1893 से 1918 के युग को द्विवेदी युग के नाम से जाना जाता है। रेलवे में झांसी में चीफ़ क्लर्क रहे द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य की कृतियों में विभिन्न शैलियों का प्रयोग किया जिनमे विचारात्मक,आलोचनात्मक प्रमुख हैं।
बहुभाषी महावीर प्रसाद जी मराठी ,गुजराती, संस्कृत ,अंग्रेजी के विद्वान थे।
उनकी कविताओं में प्रकृति प्रेम दिखता है। द्विवेदी जी प्रकृति प्रेमी थे। देखिये कविता की पंक्तियाँ:-
वह मोरों का शोर कहाँ है
श्यामघटा घनघोर कहाँ है
कोयल की मीठी तानों को
सुन सुख देते थे कानों को
आज पक्षियों की कई जातियाँ विलुप्त होती जा रही है। घटती मोरों की संख्या चिंताजनक है। द्विवेदी जी ने अपनी कविताओं में उस समय भी चिंता व्यक्त की थी।
द्विवेदी जी की गद्य की 14 अनुदित कृतियाँ तथा 50 मौलिक कृतियाँ थी। उन्होंने पद्य की 8 अनुदित कृतियाँ तथा 9 मौलिक कृतियाँ लिखी।
13 वें हिंदी साहित्य सम्मेलन 1929 में द्विवेदी जी का सम्मान किया। काशिनागरी प्रचारिणी सभा और प्रयाग के हिंदी मेले में दिए गए उनके व्याख्यान को भी पुस्तक रूप में प्रकाशित किया गया। उन्होंने स्कूल के बच्चों के लिए 6 पुस्तकें भी लिखी थी। सरल,सुबोध शैली में लिखी उनकी कृतियाँ पाठकों को बहुत पसंद आती है।
उनकी प्रमुख कृतियों में पद्य की काव्य मंजूषा,कविता कलाप,देवी स्तुति प्रमुख है।अनुवाद में रत्नावली,वेणी संसार,हिंदी महाभारत ।गद्य में नाट्यशास्त्र 1984,हिंदी भाषा की उत्पत्ति 1907,संपत्ति शास्त्र1907 ,
कालिदास की समालोचना ।अनुदित ग्रंथों में गंगालहरी,ऋतु तरंगिणी, कुमार सम्भव प्रमुख कृतियाँ है।
संस्कृत, बृजभाषा, खड़ी बोली से हिंदी काव्य रचना का श्री गणेश द्विवेदी ने किया और विपुल साहित्य की रचना की। उन्होंने आज़ादी की लड़ाई के समय मन ,वचन, कर्म से देश को स्वाधीन बनाने स्वदेश व स्वावलम्बन की भावना भारतीयों में उतपन्न करने हेतु साहित्य लिखा।
कविता ,कहानी ,आलोचना, पुस्तक समीक्षा ,अनुवाद, जीवनी के साथ साथ अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र ,विज्ञान ,इतिहास पुरातत्व आदि विषयों पर कलम चलाई।
21 दिसम्बर 1938 को महावीर प्रसाद द्विवेदी का रायबरेली में स्वर्गवास हो गया । हिंदी साहित्य का सूरज डूब गया। हमेशा के लिए हिंदी साहित्य की आचार्यपीठ रिक्त हो गई। आज हम द्विवेदी जी को न केवल साहित्य के लिए अपितु उनके व्यक्तित्व के गुण आस्तिकता,न्यायनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता के लिए याद करते हैं।
बाईस वर्षों तक हिंदी की(1903 से 1925 )प्रमुख कृतियाँ लिखी।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त इन्हें अपना गुरु मानते थे। 17 वर्ष तक हिंदी की प्रसिद्ध पत्रिका “सरस्वती” का सम्पादन किया।
रेलवे विभाग के तार बाबू द्विवेदी जी की याद में भारत सरकार ने उनके हिंदी साहित्य के अवदान हेतु उनकी स्मृति में डाक टिकिट जारी किया था।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उल्लेखनीय योगदान करने वाले,हिंदी जागरण का कार्य करने वाले द्विवेदी जी को हम उनकी इस रचना के साथ स्मरण करें:-
“प्यारे वतन हमारे प्यारे।
आजा आजा पास हमारे।।
या तू अपने पास बुलाकर।
रख छाती से हमें लगाकर।।”
– कवि राजेश पुरोहित
98,पुरोहित कुटी,श्रीराम कॉलोनी,
भवानीमंडी, जिला-झालावाड़
राजस्थान, पिन-326502