“दोहा-मुक्तक”
न्याय और अन्याय का, किसको रहा विचार।
साधू बाबा भग गए, शिक्षा गई बेकार।
नौ मन का कलंक लिए, नाच रहा है चोर-
दशा फिरी है आठवीं, पुलक उठी भिनसार॥-1
दौलत का इंसाफ हो, हजम न होती बात।
सब माया का खेल है, ठिठुर रही है रात।
हरिश्चंद्र ओझल हुए, सत्य ले गए साथ-
बिन सबूत दिन दिन कहाँ, किरण बिना कत प्रात॥-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी