लघुकथा-अभिलाषा
पूजा के जन्म पर न जाने क्यूँ उदासी सी थी । मां की चिंता किसी को नही थी। प्रसव पीड़ा से ज्यादा सरला को अपने घरवालों के रवैया पर पीड़ा हुई । नन्ही सी पूजा बड़ी बड़ी आंखों से चारो तरफ निहार रही थी। प्रेमनाथ भी कैसे बाप थे कि जिस पत्नी के साथ सात फेरे लेते वक्त सात वचन लिये उनको भी न अपनी पत्नी की चिंता न अपनी अबोध बच्ची की। प्रसव पीड़ा ने जितनी तकलीफ नही दी उतनी तो ये सोचकर कि किसी मानसिकता वाले घर मे रह रही थी। जो सास पूजा के जन्म से पहले इतनी फिक्र करती थी वही आज मुहँ फेर चुकी थी। सिर्फ इस वजह से की एक बेटा नही एक बेटी को जन्म दिया था लेकिन समय ही खराब था फिर भी सरला खड़ी रही ढाल बनके । उसने अपनी बेटी को बहुत नाजो से पला। दो साल बाद सौरव को जन्म हुआ । पूरे घर मे उत्सव मनाया गया। सरला कुछ नही भूली थी। बस बेटा बेटी का भेदभाव दिख रहा था।