सामाजिक

लड़की की ना का मतलब ना ही होता है !

मध्यप्रदेश सरकार के महिला और बाल विकास विभाग ने दुष्कर्म पीड़ित महिलाओं को बंदूक का लाइसेंस देने का प्रस्ताव रखा है। इसको लेकर तर्क दिया जा रहा है कि इससे महिलाओं में आत्मविश्वास व मनोबल बढ़ेगा। गौरतलब है कि हाल ही में मध्यप्रदेश सरकार ने बढ़ते दुष्कर्म, रेप व बलात्कार की घटनाओं को देखते हुए यह फैसला लिया था कि बारह साल से कम उम्र की नाबालिग बालिकाओं से दुष्कर्म और किसी भी उम्र की महिला से सामूहिक दुष्कर्म करने वालों को मृत्युदंड दिया जाएगा। इसी को देखते हुए राजस्थान सरकार ने भी ऐसा कानून बनाने की बात कही है। जाहिर है कि मध्यप्रदेश सरकार दुष्कर्म एवं रेप की घटनाओं के लिए अतिगंभीर है। और वो हर ऐसा कदम उठाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, जिससे इन घटनाओं में कमी आएं। आंकडों के माने तो नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की वर्ष 2015 की रिपोर्ट के मुताबिक, मध्यप्रदेश में देश में सबसे ज्यादा 4,391 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार बनी हैं। इसी अवधि में महाराष्ट्र दूसरे स्थान पर है, जहां 4,144 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार बनी। वहीं राजस्थान तीसरे स्थान पर जहां 3,644 महिलाएं को दुष्कर्म का दंश झेलना पड़ा।
इसको लेकर सरकार की चिंता वाजिब है। क्योंकि आज देश हो या प्रदेश कई भी महिलाएं अपने को सुरक्षित महसूस नहीं कर रही है। हाल में दंगल गर्ल जायरा वसीम के साथ विमान में सहयात्री द्वारा छेड़छाड़ की घटना व हरियाणा के हिसार में पांच साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म की वारदात बताती है कि बड़ी से बड़ी हस्ती से लेकर एक आम महिला तक दरिंदों के खौफ के साये में जी रही है। महिलाओं को इस डर से आजाद कराने के लिए हर सख्त कदम इस दिशा में समय की मांग है। साथ ही, हमें यह समझना भी जरूरी है कि दुष्कर्म व रेप की वारदाते क्यों हो रही है ? आखिर इनके पीछे कारण क्या है ? सरकार दुष्कर्म  पीड़िता बंदूक का लाइसेंस देकर उसका मनोबल तो बढ़ाना चाहती है लेकिन, इसके विपरीत अश्लीलता एवं कामुकता को बढ़ाने वाले विज्ञापनों और फिल्मों को रंगीन पर्दे पर दिखाकर दुष्कर्म के लिए युवाओं को दिशाहीन भी कर रही है। सरकार ने कंडोम के विज्ञापन को अश्लीलता के नाम पर दिन में दिखाने पर रोक लगा दी। यह उचित है कि कंडोम को लेकर जिस तरीके से विज्ञापन में नारी को भोग की वस्तु बनाकर पेश किया जाता है, जिससे बच्चों व बड़ों दोनों में हीन भावनाएं जन्म लेने लगती है। लेकिन, इन विज्ञापनों से  बदतर दिखाए जा रहे दृश्य हमें भटका नहीं रहे है ?
हमारी सरकारे बीमार पड़ने पर उपचार करने की आदी है। लेकिन, हम बीमार ही नहीं पड़े इसके बारे में सोचने व सावधान होने की आवश्यकता है। इंटरनेट पर हजारों हिंसक पोर्न की खुली वेबसाइट दुष्कर्म के लिए प्रोत्साहित नहीं करेगी तो क्या करेगी ? नैतिक मूल्यों का पत्तन और पश्चिमीकरण का बढ़ता प्रभाव हमारे जीवन में धीमा जहर घोल रहा है। जब समस्त माहौल ही गंदा होगा तो हम फिर देशभक्तों का कैसे निर्माण कर पाएंगे ?  ऐसे माहौल से केवल असामाजिक तत्व व दरिंदें ही पैदा होंगे। हमारे देश में महिलाओं को इंसान समझने के लिए लोग कितना वक्त लगाएंगे ये तो नहीं पता, लेकिन हम बच्चों को अच्छी परवरिश तो दे ही सकते हैं, ताकि वे महिलाओं को वस्तु न समझें। उन्हें सही समय पर सेक्स एजुकेशन दें, ताकि वो इधर-उधर से गलत चीजें न सीखें. सबसे जरूरी है कि पेरेंट्स अपने बच्चों को गुड और बैड टच का मतलब समझाएं और उन्हें आवाज उठाने को प्रेरित करें, चुप रहने को नहीं। अगर कोई भी गलत तरीके से टच करे तो उसका विरोध करना ही चाहिए और पढ़े-लिखे समाज को समझना होगा कि लड़की की ना का मतलब ना ही होता है, बेवजह उसमें अपने लिए मौका न तलाशें। कानून का बनना जरूरी है, लेकिन उसे अमल में लाना कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - [email protected]