वो अक्सर कहती है
वो अक्सर कहती है
तुम बहुत बोलते हो
पल में हंसते हो,
पल में ख़ौलते हो
वो नही जानती
एक दिन उसकी आंखें
यूं ही बरस जाएंगी
जब तक खुली हैं आँखें
जी भर के सुन लो बक बक
जिस दिन बन्द हो गयी ये आंखें
एक शब्द के लिए भी
तरस जाएंगी
वो कहती है
क्यों इतना मुस्कुराते हो
अपने गमो को छिपाकर
आखिर क्या जताते हो
क्या मिलता है तुम्हे
अपने आंसू छिपाकर
कितना भी टूटे हो अंतर्मन से
ऊपर से फड़फड़ाते हो
क्यों इतना मुस्कुराते हो
उन्हें क्या मालूम
आंसुओं को तो
आंखें भी खुद से जुदा कर देती हैं
अपनो से दूरी हो जाती है
परायों पे फिदा कर देती हैं