व्यंग्य – एक प्याज की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू !
भाईसाहब ! वड़ापाव वाले से जैसे ही हमने एक्स्ट्रा प्याज मांगे उसने हमको ऐसे देखा जैसे हमने उसकी एक किडनी मांग ली हो। यहां तक दूसरे दिन उसने अपने ठेले के बाहर बोर्ड ही टांग दिया – कृपया ! एक्स्ट्रा प्याज मांगकर शर्मिंदा ना करे ! बेचारे ! प्याज के मारे, वड़ापाव वाले के लिए ऐसा करना मजबूरी है। क्योंकि आज प्याज के पांव जमीन पर नहीं होकर सातवें आसमान पर है। जिसके चरण स्पर्श मिडिल क्लास आदमी तो सपने में भी करना का नहीं सोच सकता है। सच कहे तो प्याज प्याज न होकर कोई नवयुवती हो गई है। जो हाथ में ही नहीं आ रही है। जिसके आस्वादन के लिए मसखरी जीभ लालायित हो रही है। यहां फिर यूं कहे कि प्याज प्याज न होकर सियासत की कुर्सी हो गई है, जिसको पाने के लिए हर कोई पसीना बहा रहा है। लेकिन, प्याज तो भाव पर भाव खा रहा है। एक जमाना था जब लोगों को प्याज काटते वक्त आँसू आते थे। लेकिन, आज एक जमाना है जब प्याज का नाम सुनकर ही लोगों केे आँखों में आँसू आ रहे हैं। आज के समय वही आदमी अमीर है, जिसके घर में प्याज है। ओर तो ओर अधिक प्याज घर में रखने में जान को जोखिम भी है। आज प्याज सोने से कम थोड़े न है ! वे दिन दूर नहीं जब अखबार में यह सुर्खियां बनेगी कि एक किलो प्याज के लिए चोरों ने किया किडनेप। राह चलते एक सज्जन के हाथों से चोरों ने प्याज से भरा पूरा बैग लेकर दिन दहाड़े बनाया लूट शिकार। फलां-फलां जगह पर बरामद हुए पांच किलो प्याज, अपराधी गिरफ्तार। पड़ोसी ने प्याज के लिए की पड़ोसी की हत्या। कुछ ऐसे ही किस्से आगामी समय में हमारे समक्ष होंगे। प्याज की डिमांड उसी कदर बढ़ रही है जैसे आजकल कांग्रेस पार्टी में राहुल गांधी की डिमांड बढ़ रही है। इस प्याज के आगे बाकि सब्जियां तो बेचारी लालकृष्ण आडवाणी बनकर बेबस होकर सारा माजरा देख रही है। क्या करे प्याज के आज अच्छे दिन जो आये हुए है। जिसके अच्छे दिन आते है, उसका मूल्य अनायास ही वृद्धि करने लग जाता है। प्याज की इतनी मांग हो भी क्यों न ? यह तो ससुरा हर किसी सब्जी में पड़ता ही है। ये तो हर किसी सब्जी के साथ गठबंधन करने के लिए ही पैदा होता है। किसी भी सब्जी में साइड बाई साइड में अपने लिए जगह बना ही लेता है। जिस तरह आम को फलों का राजा कहकर नवाजा जाता है। उसी तरह प्याज भी सब्जियों का राजा है। गरीब से लेकर अमीर तक, हिन्दू से लेकर मुस्लिम तक, अगडे से लेकर पिछडे तक, बाबा से लेकर बाबी तक सब के सब इसके प्रशंसक है। यह केवल भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में उगाया और खाया जाता है। कई इसे “कान्दा” तो किसी इसे “डूंगरी” तो कई अंग्रेजदां इसे “ओनियन” कहकर भी पुकारते है। यहां तक कि आधे से अधिक का भारत तो एक प्याज के साथ चार-पांच रोटियों को खाने का हुनर रखता है। इसका तीखापन इतना लाजवाब होता है कि जिसको यदि अधिक खा लिया जाएं तो दादी-नानी से लेकर सात पुश्ते तक आदमी को याद आने लग जाती है। लेकिन, आज हालात ऐसे है कि प्याज के लिए भी धन को ब्याज पर लेना पड रहा है। आने वाले समय में वहीं प्रधानमंत्री बनेगा जो प्याज के नाम पर चुनाव लडेगा। जिस पार्टी का चुनाव चिन्ह प्याज होगा। और “भाइयों और बहनों” को प्याज देने की घोषणा अपने मेनिफेस्टो में करेगा। “पर्यावरण बचाओ” की जगह “प्याज बचाओ” आंदोलन के लिए जो आगे आयेगा, वहीं सत्ता का लुफ्त मुफ्त में उठायेगा। ओर तो ओर फिल्मों में डायलॉग इस कदर बनेंगे – “एक प्याज की कीमत तुम क्या जानो रमेश बाबू ! हर गरीब के घर का सुहाग होता है। सब्जियों का श्रृंगार होता है” तो वहीं शशिकांत जैसा किरदार “मेरे पास मां है” की जगह कहेगा “मेरे पास प्याज है !” खूब जलवे दिखायेगा प्याज ! रूलायेगा, हंसायेगा, तडपायेगा, सियासत का घमासन करावायेगा, नेताओं संग जनता को भी लडवायेगा। इस तरह अपने कारनामों की पूरी फिल्म दिखायेगा।