कुंडलिया
पाँखेँ ले उड़ती फिरूँ, छतरी है आकाश
बेंड़ी मेरे पाँव में, फिर भी करू प्रयास
फिर भी करूँ प्रयास, आस मन भरती रहती
सकल वेदना भूल, तूल को अपना कहती
रे गौतम नादान, दिखा मत विजयी आँखें
हाथ धरे तलवार, फड़कती मेरी पाँखेँ॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी