मुक्तक/दोहा

“मुक्तक” 

“मुक्तक”

रे मयूर केहि भांति मयूरी, रंग बिना कस लाग खजूरी।

अपलक चितवत तोहिं अधूरी, नर्तकप्रिय पति करे मजूरी।

रात दिवस सह आस लगाए, नहिं मतवाली नैन चुराए-

तूँ अति सुंदर जतन जरूरी, मिलन बिना की सुखी सबूरी॥

मधु शाला है मधुर मयूरी, रंग बिना कस लाग खजूरी।

अपलक चितवत तोहिं अधूरी, नर्तकप्रिय प्रति करे मजूरी।

रात दिवस सह आस लगाए, नहिं मतवाली नैन चुराए-

तूँ अति सुंदर जतन जरूरी, मिलन बिना कस सुखी सबूरी॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ