गीत – जीवन यात्रा
जो जैसा करता है जग में वैसा ही वह पाता है
चाहे जितना रो ले गा ले, पास नहीं कुछ आता है।1
सपनों की दुनिया में जीकर सारा समय गँवाता है।
जब आता है अन्त समय तो सिर धुन धुन पछताता है।2
कथनी और करनी का अन्तर उसका बढ़ता जाता है।
अन्दर बाहर की खाई को कभी नहीं भर पाता है।3
झूठ बोलना बात बात में लोभ को गले लगाता है
राग द्वेष की लेकर माला गले की फाँस बनाता है।4
जिससे उसको जीवन मिलता उसी को पाठ पढ़ाता है
देखभाल की बात न करके लाली पाप दिखाता है।5
पुण्य कर्म में शुभ प्रभाव से जब सत्संगति पाता है
उसमें अच्छी चाह है जगती और विवेक आ जाता है।6
इसी मार्ग पर चलते चलते वही भक्त बन जाता है
धीरे धीरे सभी विकारों को वह दूर भगाता है।7
संतों की सेवा करके वह परमधाम को जाता है
चल ‘अघोर’ वह सच्चे पथ पर जीवन सफल बनाता है।8
— शशि कान्त त्रिपाठी ‘अघोर’