सामाजिक

तड़फती इंसानियत

जमाने की हवाओ से टूट चुके है वे पेड़, जो कभी तूफानों के तेवर गिरा दिया करते थे! मानवीय सवेंदनाओ का कत्ल वर्तमान परिस्थितियों में सबसे अधिक देखने को मिलता है! आखिर हम धीरे धीरे अपने मूल रूप में पुनः परवर्तित होते दिखाई दे रहे है ,एक अबोध् अज्ञानी जिव से हम वर्षो की कड़ी तपस्या के कारण इंसान की श्रेणी में सम्लित हुए है! परन्तु तत्कालीन जिव आज के इंसान से ज्यादा खूंखार और बर्बर नही होगा शायद , मगर अफ़सोश आधुनिक समाज में हम सभ्य होने के बजाय पुनः असभ्यता का नंगा नाच करने पर आमादा है! वैश्विकरण के इस हवन में तकनीक और विज्ञानं का बेजोड़ मिश्रण देखने को मिला है! परन्तु समाज में व्यापत बुराइयो की आहुति अभी शेष है! दरअसल अभी हाल ही में मेरी आँखों के सामने मानवीय सवेंदना का हृदयविदारक दृश्य देखने को मिला! इस घटना की वास्तविकता सुनकर आपके दिलो दिमाग की सारी नशे दर्द से करहा उठे गी! आपका ह्दय पीड़ा से भर जायेगा! आपकी आँखे अश्रु रूपी नीर से लबालब हो जायेगी! आपके भीतर का करुणा भाव जाग्रत हो जाएगा, और आप इस समाज से घृणा करने लगोगे! आपके मन मस्तिष्क में क्रांति की भावना घर कर लेगी! और आप खुद को एक विद्रोही एक भागी घोषित कर दोगे!

मैं कल किसी कारण वश अपने गाँव से रावतसर (तहसील, बाजार ) गया। बस में यात्रा करते वक़्त मन में रोमांच और बाहरी दृश्य से मन प्रसनता से खिल रहा था। आखिर कार बस में अपरिचित चेहरों से छुटकारा मिला, मेरी मंजिल पर आकर बस रावतसर स्टेशन पर रुकी! खचाखच यात्रियों से भरी बस चन्द मिनटों में खाली हो गई, लेकिन अचानक ही मेरी नजर बस स्टेशन की पीछे बने सार्वजनिक मैदान पर पड़ी, मेरे मन में कोतूहल का ठिकाना न रहा ! हर बच्चा ,युवा, बुजुर्ग ,स्त्री पुरुष सब उस मैदान की तरफ टकटकी लगाये देख रहे थे! मैदान के अंदर सेकंडो की संख्या में भीड़ मानो किसी नेता की रैली में उमड़े किराये के टटू हो! लेकिन यहाँ न तो कोई धार्मिक कार्यक्रम था और न ही किसी नेता का अभिभाषण, क्योंकि वास्तव में यहाँ पर इंसानियत का खून सरे आम हो रहा था! मैं उत्सुकता वश उस मैदान की तरफ तेजी से दौड़ कर गया! देखा बड़ी सी पानी की टँकी के ऊपर (सबसे ऊपरी छोर पर) एक युवा दंपति खड़े थे, नोजवान युवक के हाथो में केरोशीन की बड़ी सी बोतल और उसकी पत्नी पूरी तरह बेसुध समाज के ठेकेदारो से अपनी लूटी अस्मत की कीमत मांग रही थी!

दरअसल उस निर्दोष निर्मम स्त्री का दोष इतना था कि लगभग दो महीने पहले उसके मोहले के चार लड़को ने (हवस के भूखे भेड़िये..) सामूहिक बलात्कार किया! उसके जिस्म को गिद्ध की भांति नोच नोच कर खा गए! समाज में मर्द जात से अपनी काल्पनिक शौर्यता को प्रदर्शित करने वाला पुरुष प्रधान समाज एक अबला नारी के इज्जत के साथ खिलवाड़ करके अपनी मर्दानी दिखा रहे थे, आक थू, ऐसे लोगो पर जो लोग हवस की आग में स्त्री के शरीर को भोग मात्र की वस्तु समझते है! दरअसल वे अपनी माँ की खोक को भी लजाते है! युवक आत्मदाह की कोशिश करने पर आमादा था! भृष्ट सिस्टम से चीख चीखकर अपनी पत्नी की लूटी अस्मत का हिसाब मांग रहा था, ! दो महीने हो गए सरकारी कार्यालयो के चक्कर लगाते लगाते, लेकिन लचर क़ानून व्यवस्था गरीबो ,मजदूरो की कंहा सुनती है साहब, कानून तो अमीरो के घर की रखेल होती है! किसी ने भी इनके दर्द की शुद्ध नही ली!आखिर में समाज के जहर का मारा इंसान बेचारा करे तो क्या करे.? भारत के बड़े बड़े नेता ,राजनेता ,बड़े गर्व से इस राष्ट्र को लोकतन्त्र का अग्रणी मानते है!, लेकिन भारत राष्ट्र आज भी फासीवाद ,साम्राज्यवाद की दीवारो से घिरा हुआ है! आखिर कोई क्यों न बने आतंकवादी.? कोई क्यों न बने माओवादी.? कोई क्यों न बने नक्षलवादी .? कोई क्यों न बने देशद्रोही.? अगर हालात का मारा देशद्रोही है तो हाँ मुझे देशद्रोही का तमग़ा मंजूर है! लेकिन एक भोले भाले ,साधारण से इंसान को आतंकवादी ,देशद्रोही बनाया किसने.? आपने ,आपके भृष्ट सिसटेम ने! समाज में परिवर्तन क्रांति से आता है, अहिंसा से नही! उठो ,लडो और अपना हक छीनो ये नारा बदलाव की अग्रणी बन सकता है! बात सिर्फ इस दम्पती की नही है ,न जाने कितने गरीब ,मजलूम ,मजबूर इन फासीवादी ताकतों की भेट चढ़ते है.? दुःख होता है कि हम भी इस वहसी समाज के सदस्य हैं!

वहां पर उपस्थित समाज में देशभक्ति का प्रमाण पत्र देने वाले धार्मिक स्वयंभु मूकदर्शक बनकर  हास्यपद हंसी हंस रहे थे! उनकी मजबूरियो को मनोरंजन का साधन समझकर खिलखिला रहे थे! यह वही लोग थे जो पिछली बार गाय के बछड़े को पीटने पर पुरे शहर में हु हला मचाया था! लेकिन आज न तो नारे लगे ,न बाजार जाम हुआ! क्योंकि आज किसी जानवर को चोट नही लगी थी, आज तो इंसान सरे बाजार नंगा हुआ था! सो तमासा देखने का दृश्य मात्र था! इस दहकते समाज की बेरंग तस्वीर मेरे नन्हे से विकासशील दिमाग पर क्रांति के बिज बो गई! दहाड़ों इससे पहले कि वो तुम्हे मिमियाना सिखा दे..

पवन सिहाग (बरमसर)
9549236320

पवन अनाम

नाम: पवन कुमार सिहाग (पवन अनाम) व्यवसाय: अध्यनरत (बी ए प्रथम वर्ष) जन्मदिनांक: 3 जुलाई 1999 शौक: कविता ,कहानी लेखन ,हिंदी एवं राजस्थानी राजस्थानी कहानी 'हिण कुण है' एक मात्र प्रकाशित लघुकथा ! शागिर्द हूँ! व्हाट्सएप्प नंबर 9549236320