व्यंग्य कविता – चापलूसी करना जरूरी है
बात मेरी तुम एक मान लो,
अगर ख्वाहिश करनी पूरी है।
आज की मजबूरी है,
चापलूसी करना जरूरी है।
बेटा बाप की करता,
पत्नि पति की करती,
नौकर मालिक की करता।,
अफसर मन्त्री की करता,
स्वार्थ सिद्धि के लिए,
पल-पल जी हज़ूरी है।
आज की मजबूरी है,
चापलूसी करना जरूरी है।
बैठे हो लेकर किताबी ज्ञान,
और बनना चाहते हो महान।
याद रखना सफलता के शिखर का,
चापलूसी ही है प्रथम सोपान।
चापलूसी से होती योग्यता पूर्ण,
नही तो सब डिग्री अधूरी है।
क्योंकि आज की मजबूरी है,
चापलूसी करना जरूरी है।
— पुनीत कुमार