“कुंडलिया”
जा री पाती प्रेम से, कहना दिल की बात
कैसे गुजरा है दिवस, कैसे गुजरी रात
कैसे गुजरी रात, प्रात मन किसे बताऊँ
नैनों से तुम दूर, नूर यह किसे दिखाऊँ
गौतम अक्षर गान, सुरीला कंठ निशा री
पायल है पैमाल, लपक कर पाती जा री॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी