जिंदगी
कल एक झलक जिंदगी को देखा
वो राहों में मेरी गुनगुना रही थी!
छिप जाती रह रह कर
आँख मिचौली खेलती मुस्कुरा रही थी।
एक अरसे के बाद यारों आया मुझे करार
वो सहला के गोद में मुझे सुला रही थी!
हम दोनों क्यूं खफा खफा इक दूजे से
मैं उसे और वोह मुझे समझा रही थी!
मैने पूछ ही लिया …
क्यों इतना दर्द दिया कमबख्त तूने?
वोह मुस्कुराई और बोली
मैं जिंदगी हूं
तुझे जीना सिखा रही थी!
तुझे जीना सिखा रही थी।
— विजेता सूरी ‘रमण’
3-1 -2018