खामोशियाँ
कौन कहता है ?
खामोशियाँ बे आवाज़ होती है
कभ दिल से सुनो
उनमें गहरे लफ्जो़ं की आवाज होती है।
गूंजते हैं भाव प्रतिभाव
अनेक प्रतिध्वनियां
फूटते हैं गहन उद्गार
आशयों अभिप्रायों से दूर
मौन गूंजती है खामोशी
हृदय के ध्वनि विन्यास पर
ठिठक जाती है जिह्वा
वाणी की दहलीज़ पर
अपनत्व का बोध लिए
खामोशी गूंजती है
हर साँस में, मौन के संवाद पर!
— विजयता सूरी, रमण
7.1.2018