कविता

खामोशियाँ

कौन कहता है ?
खामोशियाँ बे आवाज़ होती है
कभ दिल से सुनो
उनमें गहरे लफ्जो़ं की आवाज होती है।
गूंजते हैं भाव प्रतिभाव
अनेक प्रतिध्वनियां
फूटते हैं गहन उद्गार
आशयों अभिप्रायों से दूर
मौन गूंजती है खामोशी
हृदय के ध्वनि विन्यास पर
ठिठक जाती है जिह्वा
वाणी की दहलीज़ पर
अपनत्व का बोध लिए
खामोशी गूंजती है
हर साँस में, मौन के संवाद पर!

— विजयता सूरी, रमण
7.1.2018

विजेता सूरी

विजेता सूरी निवासी जम्मू, पति- श्री रमण कुमार सूरी, दो पुत्र पुष्प और चैतन्य। जन्म दिल्ली में, शिक्षा जम्मू में, एम.ए. हिन्दी, पुस्तकालय विज्ञान में स्नातक उपाधि, वर्तमान में गृहिणी, रेडियो पर कार्यक्रम, समाचार पत्रों में भी लेख प्रकाशित। जे ऐंड के अकेडमी ऑफ आर्ट, कल्चर एंड लैंग्वेजिज जम्मू के 'शिराज़ा' से जयपुर की 'माही संदेश' व 'सम्पर्क साहित्य संस्थान' व दिल्ली के 'प्रखर गूंज' से समय समय पर रचनाएं प्रकाशित। सृजन लेख कहानियां छंदमुक्त कविताएं। सांझा काव्य संग्रह कहानी संग्रह प्रकाशित।