शंकर जी आज बडे उदास थे, बेटी की शादी के लिये उन्हें उनके मन मुताबिक लडका नहीं मिल रहा था !
पिछले दिनों की ही बात है जब उन्होने पूरे 5 घंटे जीवनसाथी डोट कोम पर लडका ढूढने और कुंडली मिलाने में बिताये थे ! पिछले 2 साल से लगातार उनकी कोशिश रहती कि कोई बेटी के हिसाब से लड़का मिल जाये लेकिन बेटी की कुंडली इतनी अनोखी थी कि वह सौ में से मुश्किल से पांच से मिलती और जिनसे मिलती उनमे कोई न कोई खराबी दिख जाती, कोई सिर्फ ग्रेजुएशन किया था, तो कोई देहात में रहता था या कोई किसी दूर शहर में !
मंजु और मीनल बहुत हंसते थे कि इनके पास जब भी खाली समय रहता है ये लड़का ढूढने लगते हैं ! मीनल के पास मास्टर डिग्री थी और अपने ही शहर में वो एक लाईब्रेनियन थी और शंकर जी को मीनल के लिये लड़का नहीं मिल रहा था !
इस साल तो उन्होने मीनल की प्रोफ़ाइल भी शादी डोट कोम पर बना दी और खुद ही उसे चेक करते थे, साथ ही 2-3 मिलन पत्रिकाओ में भी परिचय छपवा दिया लेकिन कोई फ़ायदा नहीं ! मंजू हमेशा कहती कि जब तक निमित्त नहीं मिलना तब तक कुछ नहीं होना !
आराम से ढून्ढो इतनी जल्दी क्या है ?
लेकिन शंकर जी तो शंकर जी थे, जो ठान लिया सो करना ही है !
2 पत्रिकाओ और वेबसाइट पर खोजबीन के बाद हताश बैठे थे शंकर जी और उन्हें मंजू – मीनल समझाने में लगे थे कि क्युं इतनी टेन्शन लेते हो, जब समय आयेगा तब लड़का मिल जायेगा !
शंकर जी ने कहा कि अब से वो इनपर ध्यान नहीं देगे !
इतने में डाकिये ने दरवाज़े पर दस्तक दी, और डाक में आयी तीसरी मिलन पत्रिका और खिल उठे शंकर जी और बोले कि इसमे तो लडका मिल ही जायेगा !
मंजू और मीनल ने देखते साथ कहा- हे राम !
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लेखिका= जयति जैन ‘नूतन’
रानीपुर, झांसी उ.प्र.
बेहतरीन लघुकथा … बधाई
shukriya