“गज़ल”
बताओ सनम आप अपनी जुबानी
सुनाओ धरूँ ध्यान कथनी कहानी
पहल चित अभी जान पाई नहीं हूँ
खड़ी हूँ भरम भान अवनी विरानी॥
कहीं भी कभी भी मिले हम नहीं हैं
घिरी हूँ नयन नक्श सपनी सयानी॥
उड़े हैं अनेकों उमड़ घुमड़ बादल
न करती किफायत सुनयनी जवानी॥
शहर को बता कर तमाशा न करना
भले घर पली है सुनयनी निशानी॥
न भौंरा उड़ा है न तितली पकड़ना
कभी शक न करना न मखनी बयानी॥
समय पर मिला मीत गौतम दुबारा
न रखती गिला मन न करनी गिरानी॥
— महातम मिश्र गौतम गोरखपुरी