गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल -अहले चमन में आपकी गद्दारियाँ रहें

आबाद इस चमन में तेरी शेखियाँ रहें ।
बाकी न मैं रहूँ न मेरी खूबियां रहें ।।

नफ़रत की आग ले के जलाने चले हैं वे ।
उनसे खुदा करे कि बनीं दूरियां रहें ।।

दीमक की तर्ह चाट रहे आप देश को ।
कायम तमाम आपकी वैसाखियाँ रहें ।।

बैठे जहां हैं आप वही डाल काटते ।
मौला नजर रखे कि बची पसलियां रहें ।।

अंधा है लोक तन्त्र यहां कुछ भी मांगिये ।
बस शर्त वोट काटने की धमकियां रहें ।।

टुकड़े वतन के होंगे यही खाब आपका ।
आज़ाद है वतन तो चढ़ी त्यौरियां रहें ।।

कुर्बानियों के नाम पे अक्सर शिफर मिले ।
अहले चमन में आपकी गद्दारियाँ रहें ।।

हक छीनिये जनाब ये कानून पास कर ।
काबिल की जिंदगी में तो लाचारियाँ रहें ।।

ऊँचीथी जात जिसकी वो भूँखा मरा मिला।
कुछ तो तेरे रसूक की दुश्वारियां रहें ।।

कुछ लाइलाज़ रोग हैं इस संविधान में ।
दिन रात कर दुआ कि ये बीमारियां रहें ।।

— नवीन मणि त्रिपाठी

*नवीन मणि त्रिपाठी

नवीन मणि त्रिपाठी जी वन / 28 अर्मापुर इस्टेट कानपुर पिन 208009 दूरभाष 9839626686 8858111788 फेस बुक [email protected]