मैं गरीब हूँ
हाँ! मैं गरीब हूँ,
गरीब हूँ मैं….सच है नहीं मेरे पास ऐसी कोई चीज –
जिससे तुम मेरी तरफ हाथ बढ़ाओ.,
जियूँगा में अकेला ही….
मुझे चाह नहीं महलों की,
मैं अपनी झोंपड़ी में ही खुश हूँ….
क्या करू अच्छा नसीब नहीं है मेरा,
बदनसीब हूँ….में गरीब हूँ….
साथ मत दो चाहे तुम मेरा….
मैं आगे बढूंगा, उठ खड़ा होऊंगा अपनी गरीबी से…..
गरीब पैदा हुआ था कोई गुनाह नहीं किया मैंने,
पर गरीबी में नहीं मरूँगा…
हाँ आज में गरीब हूँ पर.
आगे गरीब नहीं रहूँगा,
मुझ पर हंसने वालो हँस लो……
फिर अगली बार ये मोका नहीं दूंगा…..
मैं अपनी किस्मत खुद लिखूंगा,
गरीब हूँ पर गरीब नहीं मरूँगा…
— हरीश ‘धाकड़’