आखिर क्यों अस्मिता उतरवाई गई,,,,,,,,,
लुढ़क गई या ये यहां लुढ़कायी गई
क्यों नारी गंदे धंधों में बहाई गई
जानना चाहता है समाज आज कि
क्या जानबूझकर ये गंदगी फैलाई गई
हो सकता है , हों दोषी कुछ रसूखदार
जो मोहब्बत की जाल में फंसायी गई
पूरी दुनिया हो गई वह कोठा इनका
जिनमें इनकी अस्मिता उतरवाई गई
क्या मिली इमदाद सभ्य समाज से
जो किसी तरह दलदल से बचाई गयीं
शर्म करो गुनाहगिरो अब तो शर्म करो
आबरू की इनसे ही कीमत गिनाई गई
आखिर क्या मजबूरी थी अबलाओं की
जो इनसे इनके घर वेश्यावृत्ति करवाई गई
— संदीप चतुर्वेदी — अतर्रा बांदा (उत्तर प्रदेश )