कह दें कि झूठ है
ये स्वप्न तू कह दे कि ये झूठ है
ठिठौलिया थी उनकी रुसवाई में
मत दस्तक दें रात के सन्नाटों में
बड़ी तकलीफ होती है तन्हाई में
वो आत्मा मेरे चिर का लिबाज है
कैसे जी पाउँगा उनकी जुदाई में
भोर तो होने दे काली रातो का
सूत दिखा दूंगा उनकी कलाई में
नासिकाओं में प्रवाहित है वो मेरे
इलजमात लगे जिसपे बेवफाई के
हाँ बदलने का ख्याल आया होगा
जो शौक़ होता है हर तरुणाई में
यकीं कर ले ये अंधेरों के मेहमान
बिखर जाएगी वो इस हँसाई में
कैसे कह सकते हो सुरो ने समां बांधा
गदेलियाँ खुजलाती है उनकी जमाईं में
चले जाओ चांदनी संग हमेशा को
वरना तपना होगा धूप की सुनवाई में
— संदीप चतुर्वेदी ” संघर्ष “
10/01/2018
रात्रि 2 बजे