“गीतिका”
समांत- ए, पदांत- आ लूँ
आओ मेरे सूरज तुमको गले लगा लूँ
रोशन कर दो छाया दिल के दिये जला लूँ
दूरी जहमत कितनी तुमसे छुपी नहीं है
वादा तुमने किया निशा को प्रिये जगा लूँ ॥
देखो अवनी पुलक रही हरियाली ले
आतुर है उन्माद विरह न बढ़े बुझा लूँ॥
लगे हाथ उम्मीदों को उठा रही हूँ
एक कदम की बात कदम चले चला लूँ॥
मौनम मन स्वीकार नैना कुछ तो बोले
किरण हुई लाचार तम के तवे तला लूँ॥
माना तुम भी आतुर हो उग आने को
बदरी हुई नादान अब इसे हटा लूँ॥
गौतम का आकाश हाथ में आए तो
मन जस तितली है चंचल उसे उड़ा लूँ॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी