गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

समांत- ए, पदांत- आ लूँ

आओ मेरे सूरज तुमको गले लगा लूँ

रोशन कर दो छाया दिल के दिये जला लूँ

दूरी जहमत कितनी तुमसे छुपी नहीं है

वादा तुमने किया निशा को प्रिये जगा लूँ ॥

देखो अवनी पुलक रही हरियाली ले

आतुर है उन्माद विरह न बढ़े बुझा लूँ॥

लगे हाथ उम्मीदों को उठा रही हूँ

एक कदम की बात कदम चले चला लूँ॥

मौनम मन स्वीकार नैना कुछ तो बोले

किरण हुई लाचार तम के तवे तला लूँ॥

माना तुम भी आतुर हो उग आने को

बदरी हुई नादान अब इसे हटा लूँ॥

गौतम का आकाश हाथ में आए तो

मन जस तितली है चंचल उसे उड़ा लूँ॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ