कविता

“सवैया गीत”

किरीट सवैया ” वर्णिक छंद । मापनी -211 211 211 211 211 211 211 211 भगण×8, भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस

“सवैया गीत”

नाहक पीर बढ़ाय गई मुरली नहिं बोलति प्रेम पुकारत

घायल की गति घायल जानत पायल बाजत झूमर नाचत।

खूब गले मह माल विराजत मोहत हैं लखि बैरन राचत

री सखि मोहन मोह गए कब साँझ भई नहिं बूझत जानत॥

कोटिक नेह लगाय रही हरि की डगरी पहुँची सुखकारक।

आपुहि नाथ पुकार रही तुमरी बखरी तकती दुखहारक।

हे अविनाश सखा सबके तुम मानहु आपुहि दुर्बल तारक।

आय भरो छलके गगरी मन सागर नागर नाथ उबारक॥

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ